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Ebook: Jaat: Ajaat Ki Kyaa Jaat

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11.02.2025
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जातिप्रथा एक जन्मगत भेद है व्यक्ति और व्यक्ति के बीच; जिसमें माना जाता है कि जन्म से ही एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से अलग है, कि एक श्रेष्ठ है और दूसरा निम्न। हम इसे मात्र एक कुरीति की तरह देखते हैं और हमारी मान्यता यही रहती है कि शिक्षा का स्तर बढ़ा देने से और इसके विरुद्ध कानून पारित कर देने से यह समस्या सुलझ जाएगी। पर ऐसा है नहीं। पढ़े-लिखे लोग भी जातिवादी मानसिकता रखते हैं, और समानता के पक्ष में कानून होने के बावजूद जातिप्रथा कायम है। आचार्य प्रशांत प्रस्तुत पुस्तक में इस विषय को गहराई से विश्लेषित करते हैं और इसे एक सामाजिक समस्या से पहले एक भीतरी समस्या बताते हैं। वे कहते हैं कि जाति हमारी अज्ञानता की उपज है; दूसरे को दूसरा समझना ही मूल समस्या है। आचार्य प्रशांत इसके समाधान के लिए हमें उपनिषद् और वेदान्त की ओर ले चलते हैं। वे कहते हैं – वेदान्त उसकी बात करता है जो अजात है, और मात्र उसी तल पर एकत्व है। पर उस अजात को समझा नहीं जा सकता जब तक हम जात को न समझें। इस पुस्तक में उस जात को ही गहराई से समझाया गया है। और इस जात की समझ से ही जाति का उन्मूलन संभव है।
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