संस्कृत विश्व की प्राच ीनतम भाषा है जिसका विशाल साहित्य (वेद, वेदा?,
उपनिषद्, पुराण, विविध शास्त्र , काव्य अादि ) अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है।
यह उदात्त संस्कारों के साथ ही साथ शास्त्री य ज्ञान तथा मौलिक चिन्तन का
अगाध स्रोत भी है। इसमें विद्यमान सुभाषित भारतीय मनीषियों के ऐसे सुवचन
हैं जो अनुभवों पर आधारित होने के कारण शाश्वत सत्य का उदघ् ाटन करते
हैं तथाा विषमता से युक्त इस जगत में संकटग्रस्त किंकर्तव्यविमूढ़ मनुष्यों
का मार्गदर्शन करते हैं। लोक-कल्याण के िलए प्रयुक्त ये सूक्तियाँ जीवन की
विस?तियों को सहज एवं सरल रूप से सुलझाने का कार्य करती हैं। इनमें
नीति,कर्त्तव्य, सत्य, व्यवहार, परिवार, समाज, राष्ट्र तथा विश्व बन्धुत्व संबंधी
अनेकानेक शाश्वत जीवनमूल्य विद्यमान हैं। जीवन के यथार्थ का दिग्दर्शन
कराने वाली एवं नैतिक मलू ्या ंे कोे मन-मस्तिष्क म ें आरूढ़ करने वाली इन
सूक्तियों से लोकहित की सहज प्रेरणा मिलती है जिसकी सहायता से मनुष्य
अपने जीवन में सत्यम्, शिवम् और सुन्दरम् की अलौकिक छवि प्रकट कर
सकता है। भाषागत सरलता, भावों की सहजता तथा संवेदना की गहराई के
साथ ही साथ अभिव्यक्ति की मनोरम शैली के कारण सूक्ति साहित्य निश्चय ही
विशेष रूप से अवलोकनीय है।
शुभचिन्तक मित्र की तरह संस्कृत-सूक्तियाँ जन-जन का मार्गदर्शन करती
ह।ैं ये जीवन म ें परिस्थिति जनित समस्याओ ं का सद्य:समाधान सझु ाकर मानव
को सुख-शान्ति तथा सन्मार्ग की अोर अग्रसर होने की प्रेरणा प्रदान करती
हैं। इनके लघु आकार में जनमानस के लिए व्यावहारिक संदेश तथा शाश्वत
जीवनदर्शन के संकेत 'गागर में सागर' की भाँति समाए हुए हैं। इनकी मधुरता की
प्रशंसा में एक सूक्ति है-
'तस्माद् धि काव्यं मधुरं तस्मादपि सुभाष ितम्'
अर्था त् काव्य मधुर होता है और उसमें भी सुभाषित (अधिक मधुर होता है)
आज जबकि समाज में मानवीय-मूल्यों का ह्रास हो रहा है, राष् ्रीय शैक्षिक
अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् इन मूल्यों को विक ासोन्मुख छात्रों एवं
जनसामान्य में िवकसित करने हेतु कृत-संकल्प है, संस्कृत वाङ्मय से चयनित
सूक्ति यों का विशेष महत्त्व है। इसी उद्देश्य से पूरक पाठ?-सामग्री के िवकासक्रम
में संस्कृत लघु पुस्तकमाला योजना के अंतर्गत विभिन्न शास्त्रों से संकलित
एवं छात्रों के बौद्धिक स्तर के अनुरूप सुसज्जित सूक्तिसौरभम् नामक एक
सुभाषित संग्रह तीन खण्डों (तीन पुष्पों) में क्रमश: उच्च प्राथमिक , माध्यमिक
एवं उच्चतर माध्यमिक छात्रों के लिए प्रस्तुत किया जा रहा है जिसका यह प्रथम
खण्ड है।
प्रस्तुत सूक्तिसौरभम् सुकुमारमति विद्यालय-स्तरीय छात्रों में संस्कृत
साहित्य के प्रति अभि रुचि उत्पन्न करने एवं उनमें नैतिक मूल्यों का विक ास
करने में उपादेय होगा। इस पुस्तक के िनर्माण में जि न ग्रन्थों, ग्रन् थक ारों एवं
वि द्वानों का सहयोग प्राप्त हुआ है, सम्पा दक उनके प्रति हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त
करता है। पुस्तक के प्रकाशन में विविध सहयोग के िलए विभाग के पूर्व कर्मच ारी
श्री रामप्रकाश और डॉ. दयाशंकर तिवारी एवं श्री अविनाश पाण्डेय, जे.पी.एफ.,
श्री प्रभाकर पाण्डेय, जे.पी.एफ., रेखा तथा अनिता कुमारी, डी.टी.पी. ऑपरेटर
धन्यवाद के पात्र हैं।
उपनिषद्, पुराण, विविध शास्त्र , काव्य अादि ) अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है।
यह उदात्त संस्कारों के साथ ही साथ शास्त्री य ज्ञान तथा मौलिक चिन्तन का
अगाध स्रोत भी है। इसमें विद्यमान सुभाषित भारतीय मनीषियों के ऐसे सुवचन
हैं जो अनुभवों पर आधारित होने के कारण शाश्वत सत्य का उदघ् ाटन करते
हैं तथाा विषमता से युक्त इस जगत में संकटग्रस्त किंकर्तव्यविमूढ़ मनुष्यों
का मार्गदर्शन करते हैं। लोक-कल्याण के िलए प्रयुक्त ये सूक्तियाँ जीवन की
विस?तियों को सहज एवं सरल रूप से सुलझाने का कार्य करती हैं। इनमें
नीति,कर्त्तव्य, सत्य, व्यवहार, परिवार, समाज, राष्ट्र तथा विश्व बन्धुत्व संबंधी
अनेकानेक शाश्वत जीवनमूल्य विद्यमान हैं। जीवन के यथार्थ का दिग्दर्शन
कराने वाली एवं नैतिक मलू ्या ंे कोे मन-मस्तिष्क म ें आरूढ़ करने वाली इन
सूक्तियों से लोकहित की सहज प्रेरणा मिलती है जिसकी सहायता से मनुष्य
अपने जीवन में सत्यम्, शिवम् और सुन्दरम् की अलौकिक छवि प्रकट कर
सकता है। भाषागत सरलता, भावों की सहजता तथा संवेदना की गहराई के
साथ ही साथ अभिव्यक्ति की मनोरम शैली के कारण सूक्ति साहित्य निश्चय ही
विशेष रूप से अवलोकनीय है।
शुभचिन्तक मित्र की तरह संस्कृत-सूक्तियाँ जन-जन का मार्गदर्शन करती
ह।ैं ये जीवन म ें परिस्थिति जनित समस्याओ ं का सद्य:समाधान सझु ाकर मानव
को सुख-शान्ति तथा सन्मार्ग की अोर अग्रसर होने की प्रेरणा प्रदान करती
हैं। इनके लघु आकार में जनमानस के लिए व्यावहारिक संदेश तथा शाश्वत
जीवनदर्शन के संकेत 'गागर में सागर' की भाँति समाए हुए हैं। इनकी मधुरता की
प्रशंसा में एक सूक्ति है-
'तस्माद् धि काव्यं मधुरं तस्मादपि सुभाष ितम्'
अर्था त् काव्य मधुर होता है और उसमें भी सुभाषित (अधिक मधुर होता है)
आज जबकि समाज में मानवीय-मूल्यों का ह्रास हो रहा है, राष् ्रीय शैक्षिक
अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् इन मूल्यों को विक ासोन्मुख छात्रों एवं
जनसामान्य में िवकसित करने हेतु कृत-संकल्प है, संस्कृत वाङ्मय से चयनित
सूक्ति यों का विशेष महत्त्व है। इसी उद्देश्य से पूरक पाठ?-सामग्री के िवकासक्रम
में संस्कृत लघु पुस्तकमाला योजना के अंतर्गत विभिन्न शास्त्रों से संकलित
एवं छात्रों के बौद्धिक स्तर के अनुरूप सुसज्जित सूक्तिसौरभम् नामक एक
सुभाषित संग्रह तीन खण्डों (तीन पुष्पों) में क्रमश: उच्च प्राथमिक , माध्यमिक
एवं उच्चतर माध्यमिक छात्रों के लिए प्रस्तुत किया जा रहा है जिसका यह प्रथम
खण्ड है।
प्रस्तुत सूक्तिसौरभम् सुकुमारमति विद्यालय-स्तरीय छात्रों में संस्कृत
साहित्य के प्रति अभि रुचि उत्पन्न करने एवं उनमें नैतिक मूल्यों का विक ास
करने में उपादेय होगा। इस पुस्तक के िनर्माण में जि न ग्रन्थों, ग्रन् थक ारों एवं
वि द्वानों का सहयोग प्राप्त हुआ है, सम्पा दक उनके प्रति हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त
करता है। पुस्तक के प्रकाशन में विविध सहयोग के िलए विभाग के पूर्व कर्मच ारी
श्री रामप्रकाश और डॉ. दयाशंकर तिवारी एवं श्री अविनाश पाण्डेय, जे.पी.एफ.,
श्री प्रभाकर पाण्डेय, जे.पी.एफ., रेखा तथा अनिता कुमारी, डी.टी.पी. ऑपरेटर
धन्यवाद के पात्र हैं।
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