Ebook: मोपला अर्थात मुझे इससे क्या
- Genre: History
- Tags: Jihad Hindus Muslims Islam Genocide Mopla Mopplah Moplah Kerala Gandhi MK Gandhi
- Publisher: Veda Vidya Shodh Sansthan
- City: Pipali, Kurukshetra
- Edition: 1st
- Language: Hindi
- pdf
प्रस्तावना रात्रि में ग्राम में अग्निकाण्ड होने पर, आग में जान-बूझकर तेल डालना, जितना समाजविद्रोही एवं पापपूर्ण कृत्य है, उतना ही इस आग की ओर से नेत्र मूंदकर रहना तथा यह मानना भी सार्वजनिक हित की दृष्टि से हानिकारक ही है कि आग लगी ही नहीं! जैसे अग्नि में तेल डालना, आग बुझाने का उपाय नहीं, उसी प्रकार "आग लगी है, उठो भागो" आदि की आवाज इस भय से न लगाना कि कहीं सोते हुए लोगों की नींद न टूट जाए, भी उस अग्नि से ग्राम को बचाने का वास्तविक उपाय नहीं है।
इसी भाँति मैं यह समझता हूँ कि मलाबार में मौपलों के उपद्रव के समय घटित भयंकर घटनाओं को अतिरंजित और अस्फुट-रंजित न करते हुए अथवा ज्यों का त्यों विवरण हिन्दू-मात्र के कानों तक पहुँचाना और इनके घातक कर्म को उनके हृदय में बैठाना, हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों के लिए हितकारी है। इसी दृष्टि से यह कहानी लिखी गई है।
यद्यपि इस पुस्तक में उल्लिखित नाम और ग्राम कल्पित हैं, फिर भी इसमें जिन घटनाओं का विवरण प्रस्तुत किया गया है उनमें वस्तुस्थिति का यथातथ्य प्रतिबिम्ब ही है! इस वर्णन में मोपलों के उपद्रवों के समय हुई भयंकर और भव्य घटनाओं को अतिरंजित करने का प्रयत्न नहीं किया है।
केवल पृथक् व अलग-अलग स्थानों पर आधारित हुई घटनाओं को एक सुसंगत कथा के सूत्र में पिरोने के लिए नाम, ग्राम व काल तथा वेला की जितनी काट-छाँट आवश्यक थी उतनी की गई है ! किन्तु ऐसा करते हुए भी इस उपद्रव के उद्देश्य, इसकी भूमिका, कृत्यों अथवा घटनाओं की संगति और मर्म के ऐतिहासिक स्वरूप का लवलेश-मात्र भी विपर्यास न होने देने की सतर्कता बरती गई है। मलाबार के उपद्रव का प्रत्यक्ष अवलोकन कर, उस उपद्रव से पीड़ित लोगों के मध्य अनेक वर्ष काम करते हुए सैकड़ों पीड़ित हिन्दुओं और मोपला उपद्रवियों के वृत्त उनके हस्ताक्षरों सहित आर्यसमाज ने "मलाबार का हत्याकाण्ड' नामक पुस्तक प्रकाशित की है। इस पुस्तक में श्रीयुत देवधर द्वारा मलाबार में पीड़ितों की सहायता करने का पुण्यकृत्य करते हुए वहाँ की परिस्थिति का इतिवृत्त भी प्रकाशित किया है। इसी विवरण और जानकारी के आधार पर यह कथा लिखी गई है। जिन पाठकों के लिए सम्भव हो वे इस पुस्तक तथा अली मुसेलियर के अभियोग का विवरण अवश्य पढ़ें! 'मलाबार का हत्याकाण्ड' नामक इस पुस्तक में ही लाला खुशहालचन्द खुरसन्द के प्रत्यक्ष रूप से देखे गये 'कुएँ' का वृत्तान्त (पृष्ठ ....) पन्नीकर, तेहअस्मा, थल कुर्र राम, सनको जी नायर, की हत्या कर तथा केमियन को मृत समझकर इस कुएं में फेंके जाने तथा ईश्वर-कृपा से उसके जीवित बचने, केश वन नम्बोदरी, कंजुनी, करुप व चमकुरी मंजेरी इत्यादि स्त्री-पुरुषों द्वारा अपने भयंकर अनुभवों का जो विवरण अपने हस्ताक्षर सहित दिया, प्रकाशित किया गया है। इन्हें पाठक अवश्य पढ़ें। उससे पाठकों को यह विदित हो सकेगा कि पुस्तक में दिया गया विवरण कितना यथार्थ है।
ऐसा अवसर अपने राष्ट्र के समक्ष क्यों उपस्थित हुआ और पुनः ऐसा प्रसंग उपस्थित न हो पाए इसके लिए किन उपायों का अवम्बन किया जाना चाहिए, इस प्रश्न को समाधानकारक रीति से सुलझाया जाना आवश्यक है। सत्य को दृढ़ता-सहित सामने रखकर हिन्दू-मुसलमान दोनों ही इस प्रश्न को समान रूप से सुलझाने को प्रवृत्त हों। ईश्वर से मेरी उत्कण्ठा-सहित यही प्रार्थना है।
-विनायक दामोदर सावरकर
इसी भाँति मैं यह समझता हूँ कि मलाबार में मौपलों के उपद्रव के समय घटित भयंकर घटनाओं को अतिरंजित और अस्फुट-रंजित न करते हुए अथवा ज्यों का त्यों विवरण हिन्दू-मात्र के कानों तक पहुँचाना और इनके घातक कर्म को उनके हृदय में बैठाना, हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों के लिए हितकारी है। इसी दृष्टि से यह कहानी लिखी गई है।
यद्यपि इस पुस्तक में उल्लिखित नाम और ग्राम कल्पित हैं, फिर भी इसमें जिन घटनाओं का विवरण प्रस्तुत किया गया है उनमें वस्तुस्थिति का यथातथ्य प्रतिबिम्ब ही है! इस वर्णन में मोपलों के उपद्रवों के समय हुई भयंकर और भव्य घटनाओं को अतिरंजित करने का प्रयत्न नहीं किया है।
केवल पृथक् व अलग-अलग स्थानों पर आधारित हुई घटनाओं को एक सुसंगत कथा के सूत्र में पिरोने के लिए नाम, ग्राम व काल तथा वेला की जितनी काट-छाँट आवश्यक थी उतनी की गई है ! किन्तु ऐसा करते हुए भी इस उपद्रव के उद्देश्य, इसकी भूमिका, कृत्यों अथवा घटनाओं की संगति और मर्म के ऐतिहासिक स्वरूप का लवलेश-मात्र भी विपर्यास न होने देने की सतर्कता बरती गई है। मलाबार के उपद्रव का प्रत्यक्ष अवलोकन कर, उस उपद्रव से पीड़ित लोगों के मध्य अनेक वर्ष काम करते हुए सैकड़ों पीड़ित हिन्दुओं और मोपला उपद्रवियों के वृत्त उनके हस्ताक्षरों सहित आर्यसमाज ने "मलाबार का हत्याकाण्ड' नामक पुस्तक प्रकाशित की है। इस पुस्तक में श्रीयुत देवधर द्वारा मलाबार में पीड़ितों की सहायता करने का पुण्यकृत्य करते हुए वहाँ की परिस्थिति का इतिवृत्त भी प्रकाशित किया है। इसी विवरण और जानकारी के आधार पर यह कथा लिखी गई है। जिन पाठकों के लिए सम्भव हो वे इस पुस्तक तथा अली मुसेलियर के अभियोग का विवरण अवश्य पढ़ें! 'मलाबार का हत्याकाण्ड' नामक इस पुस्तक में ही लाला खुशहालचन्द खुरसन्द के प्रत्यक्ष रूप से देखे गये 'कुएँ' का वृत्तान्त (पृष्ठ ....) पन्नीकर, तेहअस्मा, थल कुर्र राम, सनको जी नायर, की हत्या कर तथा केमियन को मृत समझकर इस कुएं में फेंके जाने तथा ईश्वर-कृपा से उसके जीवित बचने, केश वन नम्बोदरी, कंजुनी, करुप व चमकुरी मंजेरी इत्यादि स्त्री-पुरुषों द्वारा अपने भयंकर अनुभवों का जो विवरण अपने हस्ताक्षर सहित दिया, प्रकाशित किया गया है। इन्हें पाठक अवश्य पढ़ें। उससे पाठकों को यह विदित हो सकेगा कि पुस्तक में दिया गया विवरण कितना यथार्थ है।
ऐसा अवसर अपने राष्ट्र के समक्ष क्यों उपस्थित हुआ और पुनः ऐसा प्रसंग उपस्थित न हो पाए इसके लिए किन उपायों का अवम्बन किया जाना चाहिए, इस प्रश्न को समाधानकारक रीति से सुलझाया जाना आवश्यक है। सत्य को दृढ़ता-सहित सामने रखकर हिन्दू-मुसलमान दोनों ही इस प्रश्न को समान रूप से सुलझाने को प्रवृत्त हों। ईश्वर से मेरी उत्कण्ठा-सहित यही प्रार्थना है।
-विनायक दामोदर सावरकर
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