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cover of the book A Compendium for Learning Avesta

Ebook: A Compendium for Learning Avesta

Author: Desai Bejon N.

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28.01.2024
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Publisher: Navaz Publication
Date: 2003
Pages: 190
Авестийский язык — древнейший из сохранившихся в письменной записи иранских языков.
Настоящее пособие обучает написанию авестийской каллиграфии.
Для записи авестийских текстов был изобретён особый авестийский алфавит, происходящий от арамейской скорописи, использовавший более 50 букв для чёткой передачи фонетических нюансов мёртвого священного языка.
English, Gujarati; A beginner's introduction to the Avestan alphabet and reading rules. The order of writing Avestan letters is shown.
अवसता विकिपीडिया, एक मकत जञानकोष स
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जिस भाषा क माधयम का आशरय लकर जरथसतर धरम (पारस (इरान) का मल धरम) का विशाल साहितय निरमित हआ ह उस अवसता कहत ह। अवसता या "जद अवसता" नाम स भी धारमिक भाषा और धरम गरथो का बोध होता ह। उपलबध साहितय म इसका परमाण नही मिलता कि पगबर अथवा उनक समकालीन अनयायियो क लखन अथवा बोलचाल की भाषा का नाम कया था। परत परपरा स यह सिदध ह कि उस भाषा और साहितय का भी नाम "अविसतक" था। अनमान ह कि इस शबद क मल म "विद" (जानना) धात ह जिसका अभिपराय जञान अथवा बदधि ह।
बहत पराचीन काल म आरय जाति अपन पराचीन आवास "आरय वजह" (आरयो की आदिभमि) म रहा करती थी जो सदर उततरी परदश म अवसथित था "जहा का वरष एक दिन क बराबर" होता था। उस सथान को निशचयातमक रप स बतला पाना कठिन ह। बाल गगाधर तिलक न अपन गरथ "दि आरकटिक होम" म इस भमि को उततरी धरव परदश म बतलाया ह जहा स आरयो न पामीर की शरखला म परवास किया। बहत समय परयत एक सगठित जन क रप म व एक सथान म रह, एक ही भाषा बोलत, विशवासो, रीतियो और परपराओ का समान रप स पालन करत रह। जनसखया म वदधि तथा उततरी परदश क शीत तथा अनय कारणो न उनकी शरखला छिनन-भिनन कर दी। आरयजन क विविध कलो म दो कलो क लोग, जो आग चलकर भारतीय (इडियन) और ईरानी शाखाओ क नाम स विखयात हए, परवी ईरान म दीरघ काल तक और निकटतम सपरक म रह। आग चलकर एक जतथ न हिदकश की परवमाला पार कर पजाब क लगभग 2000 ई.प. परवश किया। शष जन आरयो की आदिभमि की परपरा का निरवाह करत हए ईरान म ही रह गए। अवसतास, विशषत:अवसता क गाथासाहितय और वदिक ससकत म निकटतम समानता वरतमान ह। भद कवल धवनयातमक (फोनटिक) और निरकतगत (लकसिकोगराफिकल) ह। दो बहन भाषाओ क वयाकरण और रचनाकरम (सिटकस) म भी निकट सामय ह।
ईरान और भारत दोनो ही दशो म लखन क आविषकार क परव मौखिक परपरा विदयमान थी। अवसता गरथो म मौखिक शबदो, छदो, सवरो, भाषयो एव परशनो और उततरो का उललख हआ ह। एक गरथ (यसन, 29.8) म अहरमजद अपन सदशवाहक जरथसतर को वाणी की सपतति परदान करत ह कयोकि "मानव जाति म कवल उनहोन ही दवी सदश परापत किया था जिनह मानवो क बीच ल जाना था।" जञान क दवता न उनह सचचा "अथरवन" (परोहित) कहा ह जो सारी रात धयानावसथित रहकर और अधययन म समय बिताकर सीख गए पाठ को जनता क बीच ल जात ह। पराचीन भारत क बराहमणो की तरह अथरवन ही पराचीन ईरान म शिकषा तथा धरमोपदश क एकामतर अधिकारी समझ जात थ। इन पराहितो म वशानगत रप म धरमगरथो की मौखिक परपरा चली आया करती थी।
पगबर क सतवन गाथाए गाथा म, जो बोलचाल की भाषा थी, पाए जात ह और जनशरति तथा शासतरीय साहितय क अनसार जरथसतर को अनक गरथो का रचयिता बतलाया जाता ह। अरब इतिहासकारो का कथन ह कि य गरथ 12,000 गाय क चरमो पर अकित थ। पराचीन ईरानी तथा आधनिक पारसी लखको क अनसार पगबर न 21 "नसक" अथवा गरथ लिख थ। ऐसा कहा जाता ह कि समराट विशतासप न दो यथातथय अनलख इन गरथो का कराकर दो पसतकालयो म सगहीत किया था। एक अनलखवाली सामगरी अगनि म भसम हो गई जब परसापालिस का राजपरासाद सिकदर न जला दिया और दसरी अनलख की समगरी साहितयिक विवरणो क आधार पर विजता सनिक अपन दश को लत गए जहा उसका अनवाद यनानी भाषा म हआ। परारभिक ससानी काल म सगरहीत य बिखर हए गरथ फिर सातवी शती म ईरानी सामराजय क हरास क कारण विलपत होकर कल साहितय वरतमान समय म लगभग 83,000 पदयो म उपलबध रह गया ह जब कि मौलिक पदयो की सखया 20,00,000 थी, जिसक बार म पलिनी का कथन ह कि महान दारशनिक हरमिपपस न ईसा की शताबदी क परारभ स तीन शती परव अधययन कर डाला था।
अवसता भाषा का धीर-धीर अखामनी सामराजय क हरास क कारण उतपनन हए ईरान म उथल-पथल क कारण हरास परारभ हो गया। जब उसका परचार बिलकल लपत हो गया, अवसता गरथो क अनवाद और भाषय "पहलवी" भाषा म परसतत किए जान लग। इस भाषा की उतपतति इसी काल म हई जो ससानियो की राजभाषा बन गई। उन भाषयो को पहलवी म जद कहा जाता ह और वयाखयाए अब "अवसतक-उ-जद अथवा अवसता तथा उसक भाषय क नाम स विखयात ह। विपरयय स इसी को "जद-अवसता" कहा गया। अनमान किया गया ह कि धारमिक विषयो पर रचित पहलवी गरथ, जो विनाश स बच रह उनकी शबदसखया 4,46,000 क लगभग होगी।
पहलवी का परचार आधनिक पारसी वरणमाला क परारभ स बिलकल कम हो गया। उसका लिखित सवरप आरय एव सामी बनावट का मिशरण था। सामी शबदो को हटाकर उनक सथानो म उनका ईरानी परयायवाची शबद रखकर उसका साधरणीकण किया गया था। कालातर म पहलवी गरथो को जब समझान की आवशयकता का अनभव किया गया, हजवर शबदो को हटाकर उनक सथान पर ईरानी परयायवाची रखकर दरह पहलवी भाषा भी सीधी बनाई गई। अपकषाकत सरल की गई भाषा और आग रचित भाषय एव वयाखयाए "पजद" (अवसता की पती-जती) क नाम स विखयात हई। पजद क गरथ अवसता वरणमालाओ म अकित हए जिस परकार ईरान म अरबी वरणमाला क साथ पहलवी लिपि का हरास हआ।
पजद भाषा ही आग चलकर पहलवी तथा आधनिक फारसी क बीच की कडी बनी। अतिम जरथसतर सामराजय क हरास क अनतर विजताओ की अरबी लिपि न अवसता की पहलवी लिपि को उतकषिपत कर दिया। अरबी अकषर आधनिक फारसी वरणमाला क अकषर मान लिए गए जिसका परचार हआ। गरथरचना जब अवसता म होती थी तो उस "पजद" कहत थ और जब पसतक अरबी अकषरो म लिपिबदध होन लगी, उस "पारसी" कहन लग गए।
अवसता क जो गरथ पगबर क अनयायियो क पास अवशिषट ह अपन सामी रप म पाए जात ह। व ऐस अकषरो म मिलत ह जो ससानी पहलवी स लिए गए ह, जिनका मल आधार सभवत: पराचीन अरमक वरणमाला का कोई न कोई परकार ह। यह लिपि दाहिनी ओर स बाई ओर को लिखी जाती ह और इसम पराय: 50 भिनन चिहनो (साइनस) का समावश पाया जाता ह।
जरथसतर मतावलबी ईरान लगभग पाच शती परयत सिलयसिड और पारथियन शासनो क अनतरगत रहा। धारमिक गरथो की मौखिक वशकरमानगत परपरा न लपतपराय गरथो क पररदधार क कारय को सरल कर दिया। ससानी सामराजय क ससथापक अरदशिर न विदवान परोहित तनसर क बिखर हए सतरो को, जो मौखिक रप स परचलित थ, एक परामाणिक सगरह म निबदध करन का आदश किया था। गरथो की खोज शापर दवितीय (309-379 ई.) क राजतवकाल परयत होती रही जिसम परसिदध दसतर अदरबाद महरसपद की सहायता सराहनीय ह।
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